अतिरिक्त >> तिजोरी का रहस्य तिजोरी का रहस्यनीलाभ
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जासूसी दुनिया का एक महत्वपूर्ण उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दो शब्द
क्या आपने कभी ऐसे मुजरिम के बारे में पढ़ा है जो तिजोरियाँ तोड़े, मगर चुराये कुछ भी नहीं ? नहीं सुना न ? तो हम आपसे गुज़ारिश करेंगे कि आप इब्ने सफ़ी का यह उपन्यास ‘तिजोरी का रहस्य’ पढ़िए। ‘तिजोरी का रहस्य’ ऐसे मुजरिम की कहानी है जो एक राज़ जानने के बाद उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। दिलचस्प बात यह है कि इस मुजरिम का पता लगाने के लिए फ़रीदी आम जासूसों से अलग हट कर ख़ुद भी कुछ मुजरिमों जैसे तरीक़े अपनाता है। यही नहीं, बल्कि वह एक पुराने मुजरिम दिलावर की मदद भी लेता है। मगर कैसे ? यह भी इस उपन्यास का एक दिलचस्प ब्योरा है। यह हिकमत इब्ने सफ़ी ने कई बार बड़ी ख़ूबी के साथ आज़मायी है और इससे पूरे जासूसी उपन्यास में एक अजीब-सी कशिश पैदा हो जाती है। और आख़िर में जब भेद खुलता है तो सब वाह ! वाह ! कर उठते हैं।
इब्ने सफ़ी ने अपने उपन्यासों में न तो जुर्म को ग्लैमराइज़ किया है, न मुजरिमों को और न उन्हें रोकने और पकड़ने वाले क़ानून के रखवालों को। मानो वे मान कर चल रहे हैं कि अगर समाज में गडबड़ी है तो जुर्म और मुजरिम लामुहाला होंगे ही और तब उन्हें पकड़ने वाली एजेन्सियाँ भी वजूद में आयेंगी ही। इसलिए वे बुनियादी तौर पर मान कर चलते हैं कि अपराध और अपराधियों का अन्त उनकी हार ही में है।
‘तिजोरी का रहस्य’ को छपे तक़रीबन साठ साल हो चुके है, लेकिन इसे हम इब्ने सफ़ी के हुनर का ही कमाल कहेंगे कि यह उपन्यास आज भी बेहद दिलचस्प जान पड़ता है। इस दिलचस्पी का कारण इब्ने सफ़ी के बयान की क्षमता है। वे पूरे माहौल को रहस्य और रोमांच से भर देते हैं। इसका एक नमूना देखिए -
इतनी भयानक शक्ल आज तक उसके सामने से नहीं गुज़री थी। उसे महसूस हुआ जैसे उसके सारे जिस्म में सनसनाहट दौड़ गई हो। न जाने क्यों उसका दिल चाह रहा था कि वह वापस लौट जाये। अभी वह इसी उधेड़बुन में पडा हुआ था कि वह खौफनाक आदमी एक होटल में घुस गया। हमीद सोच में पड़ गया कि वह अन्दर जाये या न जाये। फिर तभी उसे अपनी इस कमज़ोरी पर ग़ुस्सा आने लगा। यह क्या बेवकूफ़ी है आख़िर खौफ़ की क्या वजह है और फिर उसका काम ही ऐसा है कि किसी वक़्त भी जान ख़तरे में पड़ सकती है। हमीद भी होटल में घुस गया। शराब और तम्बाकू के धुएँ की मिली-जुली बू सारे कमरे फैली हुई थी। यहाँ बहुत सारे मिडल क्लास के बुरे लोगों का जमावड़ा नज़र आया करता था। शहर के बदनाम होटलों में से यह भी एक था। यहाँ आये दिन नयी वारदातें हुआ करती थीं।
फ़िज़ा और माहौल का बयान ऐसे करना कि पाठक के सामने एक तस्वीर-सी खिंच जाये इब्ने सफ़ी की अपनी विशेषता है और यह विशेषता ‘तिजोरी का रहस्य’ में भी जगह-जगह नज़र आती है।
हमें पूरा विश्वास है कि यह उपन्यास आपको इब्ने सफ़ी के अन्य उपन्यासों ही की तरह बेहद दिलचस्प लगेगा।
इब्ने सफ़ी ने अपने उपन्यासों में न तो जुर्म को ग्लैमराइज़ किया है, न मुजरिमों को और न उन्हें रोकने और पकड़ने वाले क़ानून के रखवालों को। मानो वे मान कर चल रहे हैं कि अगर समाज में गडबड़ी है तो जुर्म और मुजरिम लामुहाला होंगे ही और तब उन्हें पकड़ने वाली एजेन्सियाँ भी वजूद में आयेंगी ही। इसलिए वे बुनियादी तौर पर मान कर चलते हैं कि अपराध और अपराधियों का अन्त उनकी हार ही में है।
‘तिजोरी का रहस्य’ को छपे तक़रीबन साठ साल हो चुके है, लेकिन इसे हम इब्ने सफ़ी के हुनर का ही कमाल कहेंगे कि यह उपन्यास आज भी बेहद दिलचस्प जान पड़ता है। इस दिलचस्पी का कारण इब्ने सफ़ी के बयान की क्षमता है। वे पूरे माहौल को रहस्य और रोमांच से भर देते हैं। इसका एक नमूना देखिए -
इतनी भयानक शक्ल आज तक उसके सामने से नहीं गुज़री थी। उसे महसूस हुआ जैसे उसके सारे जिस्म में सनसनाहट दौड़ गई हो। न जाने क्यों उसका दिल चाह रहा था कि वह वापस लौट जाये। अभी वह इसी उधेड़बुन में पडा हुआ था कि वह खौफनाक आदमी एक होटल में घुस गया। हमीद सोच में पड़ गया कि वह अन्दर जाये या न जाये। फिर तभी उसे अपनी इस कमज़ोरी पर ग़ुस्सा आने लगा। यह क्या बेवकूफ़ी है आख़िर खौफ़ की क्या वजह है और फिर उसका काम ही ऐसा है कि किसी वक़्त भी जान ख़तरे में पड़ सकती है। हमीद भी होटल में घुस गया। शराब और तम्बाकू के धुएँ की मिली-जुली बू सारे कमरे फैली हुई थी। यहाँ बहुत सारे मिडल क्लास के बुरे लोगों का जमावड़ा नज़र आया करता था। शहर के बदनाम होटलों में से यह भी एक था। यहाँ आये दिन नयी वारदातें हुआ करती थीं।
फ़िज़ा और माहौल का बयान ऐसे करना कि पाठक के सामने एक तस्वीर-सी खिंच जाये इब्ने सफ़ी की अपनी विशेषता है और यह विशेषता ‘तिजोरी का रहस्य’ में भी जगह-जगह नज़र आती है।
हमें पूरा विश्वास है कि यह उपन्यास आपको इब्ने सफ़ी के अन्य उपन्यासों ही की तरह बेहद दिलचस्प लगेगा।
- नीलाभ
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